एससी, एसटी एक्ट में मुआवजा राशि बंद करने की तैयारी में सरकार?

0
- Advertisement -

नई दिल्ली। देश का एकमात्र कानून जो एफ आई आर दर्ज होने पर ही आर्थिक सहायता देता है। जिससे दलित ,आदिवासी ,कमजोर वंचित वर्ग अपने लिए कानूनी संघर्ष का रास्ता तय कर सके और न्याय प्राप्त कर सके वर्षों से sc-st के लोग प्रताड़ित होने पर इस कानून के तहत सरकारी मदद प्राप्त करते रहे हैं । लेकिन इसके बावजूद उत्पीड़न करने वाला व्यक्ति साम-दाम-दंड-भेद से इतना मजबूत होता है कि पीड़ित को मुआवजा जारी होने के पूर्व और बाद में चालान होने पर कोर्ट में सभी जगह चारों तरफ से घेर लेता है। एक गरीब ,पीड़ित अंततः राजीनामा कर ही लेता है । जिसे झूठा मुकदमा करार दिया जाता है और इस तरह के झूठे मुकदमों की संख्या बढ़ा चढ़ाकर दिखाई जाती है । जबकि वह मुकदमा वापसी किसी न किसी दबाव के चलते कमजोर वर्ग के लोगों को वापस लेना पड़ता है।

कोर्ट के फैसले बड़े सख्त

आजकल सभी कोर्ट इस पर गौर कर रही है और पीड़ित की कमजोरी और दबाव को नजरअंदाज कर पीड़ित के खिलाफ ही फैसले दे रही है । वर्तमान में इलाहाबाद कोर्ट ने सरकार बनाम इसरार में भी यही कहा कि पीड़ित ने सरकारी पैसा सहायता लेने के बाद कोर्ट में राजीनामा कर लिया। अतः यह सरकारी खजाने और जनता के टैक्स का दुरुपयोग है। अतः एससी एसटी एक्ट में पीड़ित को आर्थिक सहायता दोष सिद्ध होने पर ही मिलने चाहिए, अन्यथा नहीं मिलनी चाहिए। कोर्ट इतने बड़े बड़े फैसले दे रही है जबकि दलित समाज के 70-80 लोग भी एससी, एसटी कानून और मिलने वाली सहायता राशि के बारे में अब तक भी नहीं जानते हैं । कोई सीखना व समाज के कमजोर वर्ग की सहायता करना भी नहीं चाहता है । अभी भी लोगों में शिक्षा का अभाव है और जागरूकता की कमी है।

किसी भी जाति या वर्ग के खिलाफ बयानबाजी से बचें

दलित वर्ग के लोग सारे दिन भर ब्राह्मणवाद,आरएसएस, बीजेपी की आलोचना करने में लगे रहते हैं जिससे आरक्षित वर्ग के लोगों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और आपसी सद्भाव भी बिगड़ रहा है । इस तरह के लोग अंबेडकर वाद का झूठा जय जयकार करने और जय भीम करके सामान्य वर्ग के लोगों को उकसाने का ही काम कर कर रहे हैं ,जबकि वे हकीकत में समाज के उत्थान के लिए कोई भी काम नहीं करते हैं, सिवाए नारेबाजी के या अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के अलावा। जबकि उन्हें अपने हक की लड़ाई लड़नी चाहिए। अपने कमजोर वर्ग के लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए। जातीय उत्पीड़न से छुटकारा दिलाने में समानता, समरसता की स्थापना,कानूनी संघर्ष करने से ही मिल सकती है । इसके लिए किसी के खिलाफ सिर्फ सड़क पर उतरने से काम नहीं होगा । इसके लिए कानून की जानकारी जरूरी है और सरकार जो इस कानून को वापस लेने की तैयारी में है, यदि इसका पुरजोर तरीके से विरोध नहीं किया गया तो एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज होने वाले होने वाले मुकदमों में मिलने वाली मुआवजा राशि को बंद कर देगी। फिर कमजोर, वंचित वर्ग के लोग सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के वकीलों को फीस देने में असमर्थ होंगे तो उनके मुकदमे भी कोर्ट में जाएंगे ही नहीं। ऐसे में एक बड़ा संकट आने वाला है जिसके लिए लोगों को अभी से जागरूक होना जरूरी है।

अतिवाद से बचना होगा

एससी ,एसटी के उन अतिवादी लोगों से भी आग्रह है जो सिर्फ पूर्वाग्रह के आधार पर कुछ जातियों के लोगों को गालियां देते हैं । सोशल मीडिया पर सारे दिन भर बकवास करते हैं और अब ऐसे लोगों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज हो रहे हैं ,और उन्हें जेल भी हो रही है । उनके इस बयान बाजी यूट्यूब और सोशल मीडिया पर अनर्गल बयानों से समाज में वैमनस्यता लगातार बढ़ रही है । ऐसी स्थिति में चाहिए कि वे सामाजिक सौहार्द की बातें करें । अपने लोगों को जागरूक करें ।उन्हें अपने हक को रसूख के लिए लड़ना सिखाएं । जब उन पर किसी तरह का हमला हो, शारीरिक या वैचारिक तब उसका डटकर मुकाबला किया जाना चाहिए । लेकिन बिना वजह के किसी भी पूरी कॉम के खिलाफ बयान बाजी से बचना चाहिए । इस तरह की बयानबाजी का असर निजी व्यवसाय में साफ तौर पर नजर आने लगा है, जहां एससी ,एसटी के लोगों को काम पर रखने से बचा जाने लगा है । सिर्फ वहीं पर काम मिल रहा है जहां उनके बिना काम रखा है आने वाले समय में यह खाई और बढ़ने वाली है।

- Advertisement -

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here