आज़ादी ……………….
फांसी पर शीश चढ़ाये थे ,तब मिली थी आज़ादी,
लहू से दीप जलाये थे ,तब मिली थी आज़ादी|
क्रांतिकारी इरादों से,मर मिटने के भावों से,
कुर्बानी के बिगुल बजाये थे,तब मिली थी आज़ादी|
ना नेताओं के मंचन से,ना राजनीति के मंथन से,
वो जांनिसारों से खौफ खाये थे,तब मिली थी आज़ादी|
हिंदू मुस्लिम की बिसात पर,दो धर्मो की जात पर,
बेघर लाशों में समाये थे,तब मिली थी आज़ादी|
आज भी टुकड़े-टुकड़े विचारों से,बगावत के नारों से,
कुछ अधर्मी अवाम से,देश विरोधी वाम से,
इन जैसे गद्दारों से,कहाँ मिली है आज़ादी?
आतंकी घटनाओं से,जिहादी कल्पनाओं से,
काफ़िर,एक लफ्ज़ से,खून खौलती उस नब्ज़ से
एक धर्म के अलगाव से,कहाँ मिली है आज़ादी?
भाईचारे के कारतूसों से,देशद्रोही जासूसों से,
सेना पर उठते सवालों से,विवादों और बवालों से,
विद्रोहियों के मजबूत मंसूबों से,कहाँ मिली है आज़ादी?
छत से फेंकें जा रहे पत्थरों से,आस्तीनों में छुपे खंज़रों से,
बेवजह के धरनों से,कुटिल नेताओं की शरणों से,
घर के इन भेडियों से, कहाँ मिली है आज़ादी?
हमें इनसे चाहिए आज़ादी,हम लेकर रहेंगें आज़ादी,
एक सम्पूर्ण आज़ादी …… एक व्यवस्थित आज़ादी|
कोमल अरन अटारिया
निर्देशक,लेखक,साहित्यकार
लोक टुडे के माध्यम से पहला लेख लिखने के लिए जब मुझे आमंत्रित किया गया तो मेरे मन में कुछ पंक्तियों का सृजन हुआ कि समाज के मंच पर आज की बात कहने से पहले क्या मुझे इतनी आज़ादी है कि मैं आज़ादी पर चर्चा कर सकूं, अब कई लोग इस बात कहेंगें कि मैं ये कैसी व्यर्थ बात कह रहा हूँ, भारत को आज़ादी तो 1947 में ही मिल गई थी, तो अब मैं किस आज़ादी की बात कर रहा हूँ । इस सन्दर्भ में मैं ये बताना चाहता हूँ कि भारत का नागरिक भौगौलिक दृष्टि और ब्रिटिश हुकूमत से तो आज़ाद हो चुका है, पर वैचारिक मानसिकता के बंधन में वो आज भी जकड़ा हुआ है और एक समान विचारधारा का सम्पूर्ण राष्ट्र बनने से अभी भी वंचित है । कुछ लोग हम लेकर रहेंगें आज़ादी के नारे आज भी लगा रहे हैं ,अब उनसे कोई पूछे कि विश्व के सबसे पौराणिक स्थल यानि की भारत जो सदियों से पूरी दुनिया को अपने पटल से मानव को हमेशा से ही आध्यात्मिकता,वैचारिकता,शांति,अहिंसा,शिक्षा,ज्ञान,कला,संस्कृति,धर्म, अधर्म,नीति, अनीति से परिचित करवा रहा है , जिसका आधार ही “वसुधैव कुटुम्बकम” का विचार है उस देश की इस विचारधारा पर वो लोग ना जाने कौन सी आज़ादी मांग रहे हैं।
अहिंसा परमो धर्म:” के साथ राष्ट्रीय धर्म के लिए शस्त्र उठा कर युद्ध करना भी जानती है
?पहलगाम में हुई आतंकी घटना से पहले ना जाने और भी कितनी आतंकी घटनायें हो चुकी हैं, पर धर्म पूछकर मारने वाले इन लोगों को ये नहीं पता था कि इस बार की भारतीय सरकार “अहिंसा परमो धर्म:” के साथ राष्ट्रीय धर्म के लिए शस्त्र उठा कर युद्ध करना भी जानती है। पहलगाम की इस घटना के फलस्वरूप कई धर्म- निरपेक्ष लोग इसे लेकर दुखी हैं। उनका मानना है की आतंक का कोई धर्म नहीं होता है लेकिन मैं उन्ही लोगों से पूछना चाहता हूँ कि हर बार एक जिहादी मुसलमान ही क्यों?अब मुस्लिम समाज को भी ये सोचने की आवश्यकता है की कुछ कट्टर मुसलमानों के कारण बरसों से उनके धर्म पर सवाल उठ रहा है और अगर समय रहते इस वैचारिक दृष्टिकोण को नहीं बदला गया तो इसके परिणाम उन्हीं के लिए घातक होंगें, उन्हें अपने ही कट्टरपंथी जिहादियों से आज़ादी लेनी होगी।
भारत में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे क्यों
आज भी कई जगह पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे क्यों लग रहे हैं? उन नारों का संबोधन करने वाले ये क्यों नहीं सोच रहे हैं कि उनकी ये नीति उन्हीं के सर्वनाश का कारण बन रही है।
युद्ध-नीति के कौशल में सर्वोपरि है
भारत सदियों से सबका ही अस्तित्व बचाता आया है और इस देश की ये परम्परा हमेशा रहेगी पर इस विचार को उसकी बाध्यता ना समझा जाये,अपनी अस्मिता को बचाने के लिए भारत आज भी अपनी युद्ध-नीति के कौशल में सर्वोपरि है । पकिस्तान के आतंकी ठिकानों को धवस्त करके भारत ने पूरे विश्व को ये बता भी दिया है कि भारत की सहनशीलता जब हदें पार करती हैं ,तो वो दूसरों की हदों में जाकर उसे राष्ट्रीय धर्म बताकर दंड देता है ।
इस लेख के शुरुआत में मैंने कहा था कि क्या मुझे आज़ादी है कि मैं आज़ादी पर चर्चा कर सकूं ये शब्द मैंने इसलिए कहे थे क्योंकि जब भी कुछ कहने का मन करता है ,तो हम ये सोच कर चुप हो जाते है की हमारा कोई साथी जो दूसरे धर्म का है, वो कहीं बुरा ना मान जाये, कहीं कोई वैचारिक मतभेद ना हो जाये, पर आज एक लेखक और सर्वप्रथम एक भारतीय होने के नाते मुझे अब आज़ादी चाहिए की मैं सही को सही और गलत को गलत बोल सकूं । अब मुझे आज़ादी चाहिए की मैं समाज के मंच पर बिना किसी डर के अपने विचार रख पाऊं,मुझे आने वाली पीढ़ी के लिए सत्य बोलना ही होगा। एक सच्चे इतिहास को उनके सामने रखना ही होग। ,मैं कोई दार्शनिक व्यक्ति तो नहीं हूँ पर हाँ एक कलाकार और लेखक के रूप में मेरी जिम्मेदारी है की नए युग के निर्माण में सहयोग कर सकूं।
आने वाले कल को एक बौद्धिक आज़ादी देनी ही होगी
हम सभी को मिलकर अपने आने वाले कल को एक बौद्धिक आज़ादी देनी ही होगी, जिस प्रकार आज के हालात हैं क्या उस पर मंथन करने की आवश्यकता नहीं है? हम सभी केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही राष्ट्रीय एकता के भावों में रहते हैं और अगले दिन फिर से किसी चाय की दुकान पर बैठ कर इस देश में ये सब क्या हो रहा है? आखिर ये सरकार कर क्या रही है? बस यही बोलते हुए दिखाई पड़ते हैं।
भारत माता की जय बोलने में एतराज कैसा?
लेकिन इस बात पर हमारा ध्यान नहीं जाता है कि कई लोग आज भी इस देश में भारत माता की जय और वन्दे मातरम् इसलिए नहीं कहते हैं क्योंकि उनका धर्म उन्हें इसकी इज़ाज़त नहीं देता और इस बात पर भी हम यही कहते हैं कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है, बस हमें कुछ लोगों की इसी विचारधारा से आज़ादी चाहिये ।मैं अपने पाठकों को ये भी बता दूं कि मैं कोई सरकार का नुमाईदा नहीं हूँ बल्कि एक मानव और लेखक के नाते अपना धर्म निभा रहा हूँ । अपनी और सामाजिक आज़ादी के साथ सत्यता बोल सकूँ ,मैं अकेला बदलाव नहीं ला सकता पर अपनी बात रखने की कोशिश तो कर सकता हूँ। एक विचार ही बदलाव की नींव होता है, देखना ये है कि अब कौन-कौन इस नींव में अपने प्रगतिशील विचारों को समाहित करता है ,ताकि आगे जाकर कोई आतंकी किसी से उसका धर्म पूछकर उसे मृत्यु ना दे सके ।
भारत सरकार को अब एक स्थाई और दृढ संकल्प लेना होगा कि देश की जनता को हर संभव प्रयास के द्वारा आतंकवाद से आज़ाद करना है, तभी भारत एक विश्व गुरु बन पायेगा।
हाँ हमें फिर से चाहिए आज़ादी,और हम लेकर रहेंगें आज़ादीकोमल अरन अटारिया
निर्देशक,लेखक,साहित्यकार