दौसा उपचुनाव का फैसला नेताओं के नहीं, जनता के हाथ में, ब्राह्राण और गुर्जर होंगे निर्णायक

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दौसा में जीत की चाबी, ब्राह्राण, गुर्जर, ओबीसी के हाथ में?

एससी, एसटी के वोट पार्टियों के साथ 

भाजपा – कांग्रेस दोनों को भीतरघात का खतरा

दौसा – जहां तक दौसा विधानसभा सीट का मामला  है यहां पर डॅा. किरोड़ी लाल मीणा ने  इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। किरोड़ी लाल मीणा की पत्नी और पूर्व मंत्री गोलमा देवी, महुवा से विधायक भतीजा राजेंद्र मीणा  और खुद उम्मीदवार जगमोहन मीणा ने चुनाव जीतने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रखा है।  डॅा किरीड़ी मीणा सामान्य वर्ग के मतदाताओं को साधने में पूरी तरह से सफल होगें इस पर संशय बरकरार है। स्थानीय लोग  इन चुनावों को लेकर खास उत्साहित नहीं है। जहां चुनावी सभा होती है वहां जरुर भीड़ आ जाती है। वरना चाय की दुकानों और बाजारों में  शुरुआती दौर में तो लोग ज्यादा चर्चा नहीं करते थे हां अब जरुर चर्चाएं जोर पकड़ने लगी है। अभी तक पूरा का पूरा चुनाव अकेले किरोड़ी लाल मीणा के इर्द- गिर्द नजर आ रहा था। अब सचिन पायलट और मुरारी लाल मीणा के मैदान में उतरते ही लोगों का रुख बदलने लगा है। जैसे ही सचिन पायलट ने चुनाव मैदान में कमान संभाली लोग दीनदयाल बैरवा को लेकर भी चर्चा करने लगे हैं। अभी तक ऐसा लग रहा था जैसे डॅा. किरोड़ी लाल मीणा एक तरफा चुनाव को खिंच रहे हैं।  कांग्रेस के दीन दयाल बैरवा  बीजेपी के  जगमोहन मीणा के सामने किसी भी मामले 19 ही है ,सिवाय स्थानीय और जमीनी कार्यकर्ता की पहचान के । जगमोहन खुद आरएएस रहे। कई सालों तक पर्दे के पीछे से बाबा का सारा चुनावी मैनजमेंट संभाला, अब उनके चुनाव की बागडोर डॅा किरोड़ी के हाथ में जो राजनीति के दिग्गज है। सभी विधाओं में पारंगत है। पैसों से लेकर साम, दाम, दंड, भेद की नीति के मास्टर माइंड है।  जबकी दीनदयाल बैरवा सामान्य किसान परिवार से आते है। जो एक बार खुद प्रधान रहे और इस बार उनकी पत्नी प्रधान है, बैरवा के पास न धनबल  है और बाहुबल है। राजनीति के मामले में भी बाबा के आगे कुछ नहीं है। बाबा कब क्या कर दे उनके बाएं हाथ को पता नहीं लगता है। इसलिए अब तक वे चुनाव प्रचार  का एक दौर पूरा कर चुके हैं।

दूसरी ओर  दीनदयाल बैरवा के चुनाव प्रचार का रंग ही सचिन पायलट के आने से जमने लगा है। यदि सचिन पायलट , मुरारी लाल मीणा  ने थोड़ी मेहनत कर ली तो जगमोहन मीणा और दीन दयाल बैरवा में टक्कर हो सकती है। लेकिन इन दोनों का असल फसला दौसा की जनता करेगी। यहां सामान्य वर्ग से एसटी और एससी को टिकट दिये जाने से नाराजगी है। ब्राह्राण समाज और वैश्य वर्ग को लगता है की उनका हक छिना जा रहा है। गुर्जर समाज यहां निर्णायक भूमिका में है। माली भी बहुसंख्यक है। ओबीसी की एक  अन्य जाति पूर्बिया राजपूत भी चुनावों को प्रभावित करने की स्थिति में है। फिलहाल एससी, एसटी दोनों में बिखराव नजर आ रहा है। हालांकि डॅा. किरोड़ी लाल मीणा , मीणा समाज का ध्रुवीकरण करने में सफल हो सकते हैं। उनके सामने अभी कई तरह के विकल्प खुले हैं। वे आगे कौनसी सी चाल चलेंगे किसी को पता नहीं है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है की इस बार दौसा की जनता एक बार फिर से चौकाने वाला काम करेगी। जिससे राजनीतिक दलों को थोड़ा सबक सिखाया जा सके । दौसा के उपचुनावों में जीत से किसी भी पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। न तो इससे किसी की सत्ता आने वाली और न ही जाने वाली इसलिए दौसा के लोग बहुत सोच समझकर वोटिंग करेंगे।

लोगों का कहना है की संवेदनशील इलाकों में निष्पक्ष मतदान कराना सबसे बड़ी चुनौति है। यदि निष्पक्ष मतदान होगा तो नतीजे भी चौकाने वाले होंगे। कई गांवो में आज भी एससी वर्ग के लोगों को वोट कास्ट नहीं करने दिए जाते है। वहां न मीडिया पहुंच पाता  है और न ही लोग अपनी बात पहुंचा पाते है। पिछले दो चुनावों में उन  गांवों में एससी और सामान्य  वर्ग के वोट सुबह- सुबह ही डाल दिए गए। शिकायत पहुंची लेकिन कोई फायदा नहीं मिला। एक दो जगह पर रिपोलिंग जरुर हुई। लेकिन यदि सरकार उपचुनाव में निष्पक्ष चुनाव कराती है दौसा के भाग्य का फैसला नेता नहीं जनता करेगी।

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